रामप्रसाद बिस्मिलजी के आत्मकथा पर समीक्षा

राम प्रसाद बिस्मिल जी की आत्मकथा पर समीक्षा 



यह उस क्रांतिवीर की आत्मकथा है, जो भारत में क्रांतिकारी संगठन(HRA-Hindustan Republican Association) को गति देने व सुदृढ करने वालों में से सबसे महत्वपूर्ण थे। जो भगत सिंह आदि क्रांतिकारियों के भी गुरु थे।यह पुस्तक न केवल एक आत्मकथा है, अपितु, एक श्रेष्ठ साहित्यिक रचना भी है। इस आत्मकथा को राम प्रसाद बिस्मिल ने फांसी दिए जाने के 2 दिन पहले लिखा था!उस मनोस्थिति को समझते हुए ही पाठक को यह पुस्तक पढ़नी चाहिए। काकोरी कांड(पुस्तक में पढ़ सकते हैं) के अभियोग में उन्हें फांसी की सज़ा हुई थी।पुस्तक के शुरुआत में बिस्मिल अपने पूर्वजों के बारे में व बचपन की उनकी बुरी आदतों के बारे में बताते हैं।तत्पश्चात किस प्रकार पास के मंदिर में एक महात्मा से हुई भेंट ने उनका जीवन बदल डाला, वे उनके गुरु बनेऔर आर्य समाज से जुड़कर "सत्यार्थ प्रकाश" के गहन अध्ययन ने उनके जीवन का मार्ग प्रशस्त किया।


 बिस्मिल ने दैनिक दिनचर्या कैसी हो, कि बलिष्ठ व सहनशील काया निर्मित हो सके ,इसका युवाओं को उपदेश दिया है।पुस्तक में वे क्रांतिकारी गतिविधियों के लिए धन एकत्र करने में आने वाली कठिनाइयों का ज़िक्र करते हैं। काकोरी स्टेशन पर सरकारी खज़ाना लूटना उन्हीं में से एक घटना है।किस प्रकार क्रांति में रमने के कारण क्रांतिकारियों के समस्त परिवारजन भी गरीबी की कगार पर आकर खड़े हो जाते हैं, इसका दारुण चित्रण पुस्तक में है। बिस्मिल ने अपने अनुभवों के आधार पर क्रांतिकारी गतिविधियों का आलोचनात्मक मूल्यांकन किया है, और संदेश दिया है कि उस वक्त(१९२७)देश संगठित नहीं था, मानसिक रूप से उतना परिपक्व व जागरूक नहीं था कि ऐसे मज़बूत क्रांतिकारी संगठन के सहारे बिना त्रुटियों व धोखेबाज़ीयों के , अंग्रेज़ी सरकार का समूल अंत किया जा सके। हांलांकि उन्होंने सभी वीरों के बलिदानों को आज़ादी के कभी न भुला सकने वाले पन्ने के रूप में देखा ।बिस्मिल बड़े ही दुःखी मन से उनके साथ हुए धोखों का ज़िक्र करते हैं, वे धोखे, जो उन्हीं के कुछ साथियों ने उनके साथ किये, और जिस कारणवश उनकी व अन्य साथियों की सजाएं कड़ी की गईं। 


बिस्मिल अपने साथी अशफाकउल्ला खां के साथ अपने संबंध का बहुत ही खूबसूरत चित्रण करते हैं। किस प्रकार एक मुसलमान एक कट्टर आर्य समाजी का भक्त व 'दाहिना हाथ' बना,और दोनों ने देश भर के लिए मिसाल की मशाल जला दी ।बिस्मिल को अनेकों बार जेल से भाग कर भारत के अपने स्वप्न को क्रियान्वित करने के सुनहरे मौके मिले।किंतु, उनकी अंतरात्मा ने स्वयं को स्वतंत्र करके हवलदारों/सिपाहियों के व उनके परिवारों के जीवन को बलि चढ़ने की इजाज़त नहीं दी। उनके नैतिक मूल्य इतने सुदृढ थे, कि स्वयं को फांसी पर चढ़ाना उन्हें मंजूर था, लेकिन हवलदारों को मुश्किल में डालना नहीं।


बिस्मिल ने उसी समय "आत्मनिर्भर भारत" की परिकल्पना कर ली थी। उन्होंने अन्य देशों के स्वतंत्रता संग्रामों का उदाहरण देकर बताया है कि युवाओं को अपना ध्यान ग्राम संगठन सुगठित करने, व लोगों को जागरूक व सुशिक्षित करने में लगाना चाहिए, जिससे उनके भीतर राष्ट्रीय चेतना व स्वतंत्रता के मूल्य के प्रति संवेदना का विकास हो। फिर क्रांतिकारियों द्वारा किये गए हर प्रयास में सफलता प्राप्त होगी। बिस्मिल युवाओं को सलाह देते हैं, कि वे जोश में होश न खोया करें, संयम रखना सीखें। 


उन्होंने कईं सारी कविताएं व गज़लें पुस्तक में साझा की हैं।पुस्तक के परिशिष्ट में उनकी बहन द्वारा बिस्मिल का वर्णन तथा उनकी फांसी के समय तथा बाद में परिवार की स्थिति का दारुण चित्रण मिलता है। 


पुस्तक के भूमिका, परिचय व परिशिष्ठ में संपादक द्वारा कही बातों को पढ़ना आवश्यक है, क्योंकि आत्मकथा में कुछ प्रसंगों पर स्पष्टीकरण संपादक द्वारा दिया गया है। यह पुस्तक क्रांतिकारियों के जीवन का निचोड़ है। यह हमें पुनरावलोकन करने पर विवश करती है, कि स्वराज के स्वप्न को क्रियान्वित करने में हम कितना सफल रहे हैं।मैं सभी से यह किताब पढने का आह्वान करती हूँ ताकि आज के युवाओं को पता चले कि इस मिट्टी में आजादी ऐसे ही मुफ्त में नही मिली है। इसमें हजारों देशभक्त क्रांतिकारींयो का खुन मिला हुआ है। तब जाकर हम गुलाम परिवेश से बाहर आये।


अतः यह पुस्तक स्वयं भी पढ़ें, व पढ़ावें.  


             #सबसे बड़ी सीख


जब आप एक बड़े लक्ष्य को साधते हैं, तो परमार्थ के कार्य में हो सकता है आपके अपने भी आपको धोखा दें,अथवा साथ न दें,  किंतु हमें उस कार्य से विमुख नहीं होना चाहिए,और डट कर परिस्थितियों का सामना करना चाहिए, क्योंकि बड़े लक्ष्य को साधने में कठिनाइयां व कांटे तो आते ही हैं।


 


पुस्तक : आत्मकथा-राम प्रसाद बिस्मिल


संपादक:बनारसीदास चतुर्वेदी


पृष्ठ संख्या :१५०


( किताब  PDF स्वरुप में उपलब्ध है. पढ़नी हो तो संपर्क करे ) 


                                - प्रियंका पराशर


                                      ( मध्यप्रदेश )


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