Justice

 


CAA के खिलाफ प्रदर्शन करने पर दर्ज FIR रद्द - मद्रास उच्च न्यायालय का फैसला 



 


नई दिल्ली, 8जुलाई 


 


 नागरिकता संशोधन क़ानून (CAA) के विरुद्ध प्रदर्शन में शामिल होने के कारण एक व्यक्ति पर दर्ज एफआईआर को मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द करने का आदेश दिया है.न्यायालय ने अनुमति के बिना नागरिकता संशोधन क़ानून के खिलाफ सार्वजनिक सड़क पर विरोध प्रदर्शन करने के आरोपी एक व्यक्ति के खिलाफ दर्ज FIR को खारिज कर दिया है.न्यायपीठ ने FIR को खारिज करते हुए कहा, “वह आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराधों के लिए एफआईआर दर्ज करने के लिए एक सक्षम व्यक्ति नहीं है. इस प्रकार, FIR या अंतिम रिपोर्ट आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराधों के लिए रद्द करने के लिए अधीन है.”


पीठ ने कहा, “कम्प्लेन यह कहती है कि याचिकाकर्ता और अन्य लोगों द्वारा किया गया विरोध एक गैरकानूनी विरोध है और आईपीसी की धारा 143 की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है. इसलिए, अंतिम रिपोर्ट को बरकरार नहीं रखा जा सकता है और इसे खारिज किया जाता है.”


प्रदर्शनकारी शम्सुल हुदा बकवी पर आईपीसी की धारा 143 और 188 के तहत सार्वजनिक सड़क पर बिना अनुमति के विरोध प्रदर्शन करने का आरोप था.आरोपी बनाए गए CAA प्रदर्शनकारी शम्सुल हुदा ने उच्च न्यायालय में उनपर दर्ज एफआईआर को रद्द करने की मांग की थी.अपनी मांग में उन्होंने इस बात को आधार बनाया था कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 195 (1) (ए) के अनुसार, कोई भी अदालत आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध का संज्ञान नहीं ले सकती, जब तक कि पब्लिक सर्वेंट के पास प्राधिकरण से लिखित आदेश न हो.इस मामले की सुनवाई में न्यायमूर्ति जी के इलानथिरियन ने कहा कि आईपीसी की धारा 143 और 188 के तहत अपराध के लिए पुलिस द्वारा FIR दर्ज की गई है. अदालत ने यह भी कहा कि जीवनानंदम और अन्य बनाम राज्य में यह माना गया कि एक पुलिस अधिकारी आईपीसी की धारा 172 से 188 के तहत आने वाले किसी भी अपराध के लिए प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकता है.जीवनानंदम और अन्य बनाम राज्य में आईपीसी की धारा 188 के तहत अपराध के लिए एफआईआर दर्ज करने के बारे में दिशानिर्देश जारी किए गए थे. इसमें कहा गया था कि आईपीसी की धारा 172 से 188 के तहत आने वाले किसी भी अपराध के लिए पुलिस अधिकारी प्राथमिकी दर्ज नहीं कर सकता है.


पुलिस अधिकारी की भूमिका केवल रोकथाम की कार्रवाई तक ही सीमित रहेगी, क्योंकि ये सीआरपीसी की धारा 41 के तहत निर्धारित की गई है और उसके तुरंत बाद उसे संबंधित पब्लिक सर्वेंट / अधिकारी को इसके बारे में सूचित करना होगा.


इस दिशानिर्देश में कहा गया था, “पुलिस अधिनियम, 1861 की धारा 30 (2) के तहत जारी किया गया प्रवर्तन तर्क की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए और यह केवल एक नियामक शक्ति की प्रकृति में हो सकता है और नागरिकों के किसी भी लोकतांत्रिक असंतोष को दबाने के लिए पुलिस की एक सामान्य शक्ति नहीं है.”ज्ञात हो कि जब प्रशासन द्वारा जारी आवश्यक निर्देश का पालन नहीं किया जाता है तो इस धारा के तहत कार्रवाई की जाती है. लॉकडाउन में भी प्रशासन के निर्देशों का पालन नहीं करने पर आईपीसी की धारा 188 के तहत कार्रवाई की गई.आईपीसी की धारा 188 उस समय लागू की जाती है जब पब्ल‍िक सर्वेंट द्वारा लागू नियमों का उल्लंघन किया जाता है. इसे सरकारी आदेश के पालन में बाधा और अवज्ञा माना जाता है. प्रशासन द्वारा लागू ऐसे नियम जिसमें जनता का हित छुपा हो और यदि कोई इसकी अवमानना करता है तो प्रशासन उस व्यक्ति पर धारा 188 के तहत कार्रवाई कर सकता है.